Friday, August 30, 2019

ChainSinghji married with Kunwaranisa Rajawat ji from Thikana Muwaliya Jageer a Royal Sonanaveej Jageerdar of Narsinghgarh State

 हमारे पूज्यनीय श्रद्धेय कुंवरसा चैनसिंहजी के विवाह के संबंध मे इतिहासकारों, पूर्व जागीरदारों के वंशजो को छोड़ कर बहुत कम लोगों को ही जानकारी है आज हर कोई इस बारे में जानना चाहता है और पीछले कुछ वर्षो से कुछ भ्रांतिया भी फैलाई जा रही है और गलत तथ्यों के साथ गलत दावे भी लोगो ने किये है जिनकी सत्यता व प्रमाणिकता आज आपके सामने है Read More...  





भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई सन 1857 की क्रांति से 33 वर्ष पूर्व ही नरसिंहगढ़ रियासत के वीरसपूत अमर शहीद कुँवरसाब चैनसिंहजी ने मात्र 24 वर्ष की उम्र में ही सन 1824 में भारत की स्वाधीनता के लिये शंखनाद करते हुए अंगेजो के खिलाफ युद्ध छेड़ कर कर सिहोर छावनी पर अपने प्राणों की आहुति आहुति दे दी थी आपके साथ आपके ससुरसाब ठाकुर साहब शिवनाथसिंह जी राजावत भी सीहोर युद्ध में शहीद हो गए थे।  


कुंवर साहब चैन सिंह जी के विवाह के सम्बन्ध में  लगातार कुछ भ्रांतियां भी लोग द्वारा फैलाई जा रही है जिनकी सत्यता और प्रमाणिकता निम्नलिखित बिंदुओं से आज स्पष्ट हो जायेगी।


1. सबसे पहला प्रमाण कुंवरानी जी का मंदिर।

कुंवरानीसा राजावतजी ने कुँवर चैनसिंहसिंह जी की याद में परशुराम सागर के पास एक मंदिर बनवाया जिसे हम कुंवरानीजी के मंदिर के नाम से जानते है। कुंवरानीसा का मंदिर नरसिंह द्वार के समीप, थावरिया में परसराम तालाब के किनारे पर बना है। इस मंदिर की खासियत यह है की इन प्रतिमाओ में भगवान  का स्वरुप मुछों में है अर्थात  कुंवरानीजी भगवान की इन मुछों वाली प्रतिमाओ में कुँवर चैनसिंह सिंह जी का प्रतिबिम्ब देखकर उसी रूप में उनकी आराधना करती थी। 
कुँवर चैनसिंह सिंह जी की पत्नी कुवरानीसा राजावत तक जब कुंवारसाब के वीरगति को प्राप्त होने का समाचार पंहुचा तो उन्होंने उसी दिन से अन्न को त्याग दिया एवं उसके बाद से केवल पेड़-पोधो के पत्तो पर फलहार कर जीवन व्यतीत किया।  


2. दूसरा प्रमाण कुंवरानीसा राजावत जी के पिताश्री ठा.सा.शिवनाथ सिंह जी के वंशज ।

 #कुंवरसा_चैनसिंहजी_का_विवाह_कुंवरानीसा  राजावतजी पुत्री ठा.सा.शिवनाथ सिंह जी राजावत झिलाई जयपुर (नरसिंहगढ़स्टेट में मुवालिया जागीर में) से हुआ था जिनके वंशज वर्तमान में नरसिंहगढ़ से 3 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम- पंचायत मुवालिया खेदर में निवास करते है (रियासतकालीन रिकॉर्ड में ठिकाना मुवालिया-जागीर है) यह जागीर कुंवरसाब के विवाह के समय वैवाहिक संबंध में सनद की गई थी। मुवालिया में लगभग २०० वर्ष का मकान आज भी यथावत है। 
उस समय राजा-महाराजो के अधिकतर संबंध ठिकानेदारों व जागिरीदारो में ही होते थे क्योंकि ये अन्य स्टेट के भाई-बंध ही होते थे और राजाओ के अनेक वैवाहिक संबंध होते थे। 
प्रमाण व दस्तावेज :- १. श्री बुधसिंहजीकृत किताब में विवरण। , २.मुवालिया जागीर राजकीय दस्तावेज। , ३. लगभग 200 वर्षो पुराना मुवालिया का मकान व मेहताब बाग वर्तमान कुआ और छारबाग,  ४.झाली बाग दस्तावेज। 



3.  चारण ठा.सा.बुधसिंहजी साहब के द्वारा लिखित बुधसिंहकृत में विवाह का उल्लेख  । 

अमर शहिद कुंवार चैनसिंह जी के विवाह के बारे में सबसे सटीक व सबसे पुराना लेख उस समय के चारण ठा.सा.श्री बुधसिंहजी चारण साहब आपको जोधपुर व नरसिंहगढ़ रियासत से कविराज की पदवी प्राप्त थी आपके द्वारा रचित किताब #बुधसिंहजीकृत महाराजकंवरश्रीचैनसिंहजीरीवार्ता में है जिसमे स्पष्ट लिखा है "कुंवरचैनसिंहजी रा ससुरा शिवनाथसिंह जी झीलाई" आप ठिकाना मुवालिया जागीर के प्रथम जागीरदार थे ठाकुर साहब शिवनाथसिंह जी राजावत को नरसिंहगढ़ रियासत से सन १८१८ में बरोड़ी जागीर प्रदान की गई थी जिसे सन १८२० में बदल कर मुवालिया जागीर व सोनानविस ठिकानेदार की पदवी प्रदान की गई थी। कुंवर सा.चैनसिंहजी के साथ आपके ससुरा साहब भी नरसिंहगढ़स्टेट की ओर से युद्घ करने सीहोर पधारे थे व अंतिम समय तक साथ रहे व उनके साथही वीरगति को प्राप्त हुए एवं इससे पहले होलकर अंग्रेज युद्घ सन १८१८ सीतामऊ में भी साथ पधारे थे व होलकर की रानियों को अग्रेजों से छुड़ा कर लाए थे जबकि होलकर अग्रेजों से पराजित हो चुके थे। इस युद्ध का रिकॉर्ड सीतामऊ,महिदपुर,जावरा एवं मंदसौर के गजेडियर नोटिफिकेशन में दर्ज है। 
एतिहासिक प्रमाणिक पुस्तक  #बुधसिंहकृत की विश्वशनीयता पर शक करना मतलब क्षत्रियों को अपनी अस्मिता पर शक करने के बराबर है क्योंकि श्री बुधसिंहजी चारण थे और चरणों का क्षत्रियों में एक विशेष स्थान रहा है क्योंकि #चारण हमारे ही भाईबंध होते थे  आपके वंशज नरसिंहगढ़ के पास मंदौरा जागीर में विराजते है जो नरसिंहगढ़ के सोनानवीस ठिकानेदारों में आते है। चरणों ने ही भारत में  #क्षत्रियों_के_गौरवमई_इतिहास को अपनी भाषा में संजो कर रखा जिसे चरणों के समुदाय के अलावा और कोई नही पड़ सकता था आपकी कुलदेवी जी माँ करणी माता जी है जिनके नाम से करणी सेना बनी।
प्रमाण व दस्तावेज :- ठा.सा. बुधसिंहजी चारण द्वारा रचित "महाराजकुमार श्री चैन सिंह जी री वार्ता"



4.  माफी जागीरदार ठिकाना-मुवालिया  
#माफी_जागीरदार_मुवालिया जो रियासत की ऐतिहासिक किताब के कालम नंबर-6 में लिखा है इसका मतलब है की कुंवर साब चैनसिंह जी के साथ युद्ध करते हुए जो-जो ठिकानेदार वीरगति को प्राप्त हुए थे उनमें से कुछ को माफी जागीर कर विशेष सुविधाएं रियासत की ओर से सन 1824 से दी गई थी जो हर आदेश में बदस्तुर जारी रहती थी व बंदोबस्ती आदेश 1827 में भी उनको जारी रखने का आदेश था उनको लगान आदि की माफी दी गई थी मतलब उन्हे लगान नहीं देना होता था साथ ही नोकर,चाकर, हज्जाम आदि स्टेट की तरफ से ही दिए जाते थे इन सभी सेवादरों का वेतन रियासत की ओर से दिया जाता था । कुंवर साब चैनसिंह जी का विवाह मुवालिया ही हुआ था इसीलिए कुंवर साब के ससुराल पक्ष को मिलने वाली सुविधाएं, झाली बाग, मेहताब बाग मुवालिया आदि मुवालिया जागीर को ही सन 1824 से चले जा रहे है
प्रमाण व दस्तावेज :- रियासतकालीन राजकीय बंदोबस्ती आदेश सन १८२७ कलम छटी (कलम-६),  इस बंदोबस्ती आदेश में स्पष्ट लिखा है की कुंवरसाब चैनसिंहजी के समय सन 1824 से चले आ रहे उनके नोकर जाकर, माफ़ी जागीरदार पद जेसे के तेज जारी रहेंगे और झाली बाग मुवालिया का यथावत रहेगा।




5. कुंवरानीसा के छोटे बहन का संबंध राजगढ़ रियासत में।
ठाकुर साहब भारतसिंहजी मुवालिया के छोटे भाई ठाकुर साब नाथसिंहजी तीन साल बाद सन 1827 में ठिकान पीलूखेड़ा जयपुर से राजगढ़ पधारे थे आप दोनो की छोटी बहन एवं  कुंवर साब के ससुरसाब शहीद ठाकुर साब शिवनाथसिंह जी राजावत की छोटी पुत्री एवं कुंवरानीसा नरसिंहगढ़ की छोटी बहन का विवाह राजगढ़ स्टेट के महाराज मोती सिंह जी के साथ हुआ था। इस वैवाहिक संबंध में उनके भाई ठा.सा.नाथसिंहजी राजावत को राजगढ़ स्टेट से सन 1827 में सवांसी जागीर प्रदान की गई थी। 


 कुंवरानीसा नरसिंहगढ़ की छोटी बहन का विवाह कुंवरसाब के वीरगति के 3 साल बाद राजगढ़स्टेट के महाराज मोतीसिंह जी के साथ हुआ था। इस वैवाहिक संबंध में आपके भाई ठा.सा.नाथसिंहजी राजावत को राजगढ़ स्टेट से सन 1827 में सवांसी जागीर प्रदान की गई थी 

 
प्रमाण व दस्तावेज :- 1. राजगढ़ स्टेट की सवासी जागीर सनद। , 2. राजगढ़ गजेड़ियर नोटिफिकेशन। , 3. ऐतिहासिक किताब का विवरण। 
4. इस संदर्भ में एक लेख पत्रकार महोदय ने फेसबुक पर भी डाला था।  Link -  https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=452681323531874&id=100063700304961 


राजगढ़ स्टेट के बहुत से जागीरदार कुंवर साब के साथ सिहोर जाना चाहते थे पर स्टेट की अनुमति के बैगर नही जा सके।
गौर करने वाली बात ये है की सिर्फ नरसिंहगढ़ स्टेट के ठिकानेदार व जागीरदार ही कुंवार साब चैनसिंह जी के साथ सिहोर युद्ध में गए थे राजगढ़ स्टेट या अन्य स्टेट से कोई नहीं गया अगर आस-पास कि रियासत के जागीरदार भी उनके साथ चले जाते तो शायद वे शहिद नही होते अपितु उनके अपार साहस और युद्ध वीरता के साथ संख्या बल भी होता तो वे विजयश्री लेकर ही आते। और कुछ लोग तो बीच रास्ते में से ही लोट आए थे। 
राजगढ़ रियासत के बहुत से जागीरदार कुंवर सा के साथ मन ही मन जाना तो चाहते थे पर राजगढ स्टेट के खिलाफ जाते तो जागीर जप्त कर ली जाती थी जैसे विद्रोह करने पर राजगढ स्टेट के बड़े ठिकाने शिलखेडा की जप्त की ओर महाराज साहाब शिलखेड़ा होकम को यहां से ग्वालिया सिंधिया जी के पास जाना पड़ा वे उनके ADC बने थे। 


6. कुंवरसाब के ससुरसाब का जयपुरस्टेट से लिंक

झिलाय Jhilai :- झिलाई को जयपुर स्टेट की छोटी आमेर बोला जाता था और ठाकुर साहब शिवनाथ सिंह जी राजावत झीलाई से नरसिंहगढ़ पधारे थे आप झिलाई के भाईबंध है आप ने जयपुर की जागीर नहीं ली व नरसिंहगढ़ में #ठिकाना_मुवालिया_जागीर लि थी। स्टेट टाइम में जागीरे या तो वैवाहिक संबंध में मिलती थी या वीरता के लिए मिलती थी जैसे 5 घोड़ों की, 11 घोड़ों की।  आपको 11 घोड़ों की जागीर थी। जिसके बारे में क्षत्रिय होना गर्व है इस page की ये Link देखे

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=815480993553251&id=100052740730220&sfnsn=wiwspwa&mibextid=RUbZ1f   

#कुंवरसा_चैनसिंहजी के ससुरसाब ठा.सा.शिवनाथ सिंह जी राजावत के पूर्वजो जयपुर स्टेट का झिलाई गढ़। 


7. सोना-नविस ठिकानेदार जागीरदार पद।   (आज के कैबिनेट मंत्री से भी बड़ा पद )

 कुंवरसाब के ससुरसाब ठाकुर सा शिवनाथसिंह जी जो झीलाई जयपुरस्टेट से यहां पधारे थे उनको नरसिंहगढ़ स्टेट में जागीर मिली थी जिसको बाद में बदल कर पास में ही मुवालिया जागीर कर सोनानविश ठिकानेदार का पद दिया था जो की आज का कैबिनेट मंत्री से भी ऊंचा  पद था क्योंकि पूरी नरसिंहगढ़ स्टेट में कुल ११ ठिकानेदारों को ही सोनानविश का पद दिया गया था जिसका मतलब महाराज के अलावा ये व्यक्ति ही उनके सामने सोने के कड़े पैरो में व अन्य आभूषण धारण कर सकते थे। आपके बाद आपके बड़े पुत्र ठा.सा.भरतसिंह जी राजावत ठिकाना मुवालिया जागीर की गादी पर विराजे। उस नगर की अधिकतर संख्या किले पर ही रहती थी आप भी स्टेट द्वारा प्रदान हवेलियों में किले पर ही विराजते थे। 
मुवालिया सोनानवीश ठिकानेदार :-  
नरसिंहगढ़ स्टेट के (११) ग्यारह सोनानवीस जागीरदार ये ११ ठिकानेदार जिनका उस समय राज्य में ओहदा आज के कैबिनेट मंत्रियों से भी बड़ा था राज्य के बड़े फैसले इन ११ ठिकानेदारो की अहम भूमिका रहती थी युद्ध की रणनीति हो या स्टेट पर आक्रमण हो तब या विशेष अवसर व पाग दस्तूर, गोदनशीनी आदि के समय ये 11 ठिकानेदार महाराज के साथ रहते थे।
यह लिस्ट श्रीमंत महाराज विक्रम सिंह जी नरसिंहगढ़ की गादी पर महाराज कुंवर भानु प्रकाश सिंह जी की गोदनशिनी के समय की है। List  :-
१.  ठिकाना हिनौती जागीर 
२.  ठिकाना मदोरा जागीर 
३.  ठिकाना रोसला जागीर
४.  ठिकाना झाड़क्या जागीर 
५.  ठिकाना खरेटिया जागीर 
६.  ठिकाना टोडी जागीर
 ७.  ठिकाना पडलिया जागीर 
८.  ठिकाना गोरखपुरा जागीर
९.  ठिकाना मुवालिया जागीर 
१०. ठिकाना  मुंडला जागीर 
११.  ठिकाना कांकरिया जागीर 
प्रमाण व दस्तावेज मुवालिया में है।
चित्र देखे 

8. सबसे बड़ा प्रमाण सन 1824 से आज तक लगभग 200 वर्षो व 7 पीढ़ियों से मुवालिया गादी पर उनके वंशज चले आ रहे है। इस घराने के पूर्वजों का समय पर नरसिंहगढ़ स्टेट में विशेष पद रहा है।
ठिकानों में और राजपूताने में वर्षों से एक परंपरा चली आ रही है जिसे पागदस्तूर या पगड़ी कहते हैं। ठाकुर साहब के स्वर्गवास होने के उपरांत कार्यक्रम के दिन उनके पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र को पाग-दस्तूर में सबसे पहले पाग बंधती है और वही ठिकाने की उस गादी पर रहता है बाकी भाइयों को अन्य ठिकाने दे दिए जाते थे सिर्फ उस स्थिति में के पुत्र पद के योग्य नहीं हो तो छोटे भाई को गादी पर बिठाया जाता था।
यह सब मैंने इसलिए बताया क्योंकि 
.ठा.सा.शिवनाथ सिंह जी के कुंवरसाब के साथ सीहोर में शहीद होने के बाद पागदस्तूर की रस्म हुई जिसमे बड़े पुत्र 
.ठा.सा.भरत सिंह जी राजावत को पाग बंधी एवं आप ही ठिकाने मुवालिया की गादी पर बिराजे और झाली आश्रम भी उन्हीं के नाम किया गया था 
उसके बाद उनकी गादी पर
३.ठा.सा मेहताब सिंह राजावत जी विराजे जो नरसिंहगढ़ स्टेट के दीवान भी बने थे। (चित्र संख्या देखे)
आपके बाद 
४.ठा.सा.रणजीत सिंह जी राजावत ठिकाना मुवालिया की गादी पर बिराजे।(चित्र संख्या देखे)
आपके बाद
५.ठा.सा.माधोसिंह जी राजावत ठिकाना मुवालिया जागीर की गादी पर बिराजे। 
आपके बाद  सन १९१९ में पूर्व जागीरदार 
६.ठा.सा. भीमसिंह जी राजावत ठिकान-मुवालिया जागीर की गादी पर सन १९१९ में बिराजे।  (चित्र संख्या देखे) 
आपके सन १९९५ में देवलोकगमन होने पर पाग दस्तूर की रस्म में 
७.ठा.सा.प्राणपाल सिंह जी राजावत ठिकान-मुवालिया जागीर की गादी पर वर्तमान में विराजमान है झाली बाग लगभग २०० वर्षो और 7 सात पीढ़ियों से कुंवराणीसा राजावतजी के वंशज ठिकाना मुवालिया को ही चला आ रहा है। 
 


कुंवरसा के साथ शहीद ठाकुर सा. शिवनाथ सिंह जी के वंशज मुवालिया जागीर के कुछ पूर्व वंशजों जागीरदारों के लगभग 200 वर्ष पुराने फोटो :-
नरसिंहगढ़ स्टेट के दीवान ठाकुर साहब मेहताब सिंह जी राजावत
 ठिकाना मुवालिया जागीर 











साहित्यकार ठाकुर साहब शंकरसिंह जी राजावत
 ठिकाना मुवालिया जागीर







अन्य राजकीय दस्तावेज एवं प्रमाण : -




भारत के प्रथम वीर शहीद वीर कुँवर चैनसिंह जी नरसिंहगढ़  के बारे में कुछ महत्वपूर्ण लिंक :-

साभार Source : - https://www.narsinghgarh.com/2023/07/chainsinghji-wife-kunwaranisarajawat-ji.html

http://www.narsinghgarh.com/2023/07/kunwarchainsingh-ji-narsinghgarh-sehore.html

https://www.karnisena.com/2017/07/first-freedom-fighter-of-india-chain.html

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प्रमाण व दस्तावेज ठिकाना मुवालिया जागीर में है इतिहास के जानकारों का स्वागत है।  धन्यवाद 

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